Thursday, July 25, 2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।

इस वेद वाक्य में उच्चादर्श प्रस्तुत करते हुए पृथ्वी पर रहने वाले सभी व्यक्तियों के लिए कल्याण की कामना की गई, वे निरोगी रहें और धन धान्य से भर पूर रहें और सुखी रहें और किसी को किसी तरह का दुःख या वेदना न हो, सबका भला हो 
पर यह कथन केवल पुस्तकों तक सीमित रहे अगर इस पर पूरी तरह से अमल किया जाता तो यहाँ न कोई स्वर्ण होता और न आछूत, न आर्य होता और न अचार्य / न कोई दास , दस्यु , असुर, राक्षस होता और न ही नीच , कमीन , चांडाल 

No comments:

Post a Comment